ये लहरें घेर लेती हैं ये लहरें ...
उभर कर अर्द्ध द्वितीया टूट जाता है...
अंतरिक्ष में ठहरा एक
दीर्घ रहेगा समतल - मौन
दू्र... उत्तर पूर्व तक तीन ब्रह्मांड टूटे हुए मिले चले गये हैं
अगिन व्यथा भर सहसा कौन भाव बिखर गया इन सब पर?
(1943)
हिंदी समय में शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ
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